कर्तृत्वाची जाई। क्रांतीज्योती।।
नारीचं जगणं। कस्पटासमान।
नसे काही मान। समाजात।।
विद्या श्रेष्ठ धन। साऱ्या धनाहून।
दिले पटवून। बहुजना।।
उन पावसात ।हिंडे दिनरात।
करण्या शिक्षित। नारीजन।।
शिव्याशाप देती। गरळ ओकती।
दगड मारिती। सनातनी।।
आप्तांचा धुत्कार। भटांचा फुत्कार।
करिती सत्कार। गोरेजन।।
शुद्रा उद्धारिले। मनु लाथाडले। कार्य चालविले। ज्योतिबाचे।।
आपुल्या कर्मानं। झाली तु महान। झुकतसे मान। तवपुढे।।
कवि- रमेश वरघट
करजगाव
ता. दारव्हा जी. यवतमाळ